Friday, June 4, 2010

Yeh naa thi hamari kismat : MIRJA GALIB

यह न थी हमारी क़िस्‌मत कि विसाल-ए यार होता
अगर और जीते रह्‌ते यिही इन्‌तिज़ार होता

तिरे व`दे पर जिये हम तो यह जान झूट जाना
कि ख़्‌वुशी से मर न जाते अगर इ`तिबार होता

तिरी नाज़ुकी से जाना कि बंधा था `अह्‌द बोदा
कभी तू न तोड़ सक्‌ता अगर उस्‌तुवार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए नीम-कश को
यह ख़लिश कहां से होती जो जिगर के पार होता

यह कहां की दोस्‌ती है कि बने हैं दोस्‌त नासिह
कोई चारह-साज़ होता कोई ग़म्‌गुसार होता

रग-ए सन्‌ग से टपक्‌ता वह लहू कि फिर न थम्‌ता
जिसे ग़म समझ रहे हो यह अगर शरार होता

ग़म अगर्‌चिह जां-गुसिल है पह कहां बचें कि दिल है
ग़म-ए `इश्‌क़ अगर न होता ग़म-ए रोज़्‌गार होता

कहूं किस से मैं कि क्‌या है शब-ए ग़म बुरी बला है
मुझे क्‌या बुरा था मर्‌ना अगर एक बार होता

हुए मर के हम जो रुस्‌वा हुए क्‌यूं न ग़र्‌क़-ए दर्‌या
न कभी जनाज़ह उठ्‌ता न कहीं मज़ार होता

उसे कौन देख सक्‌ता कि यगानह है वह यक्‌ता
जो दूई की बू भी होती तो कहीं दो चार होता

यह मसाइल-ए तसव्‌वुफ़ यह तिरा बयान ग़ालिब
तुझे हम वली समझ्‌ते जो न बादह-ख़्‌वार होता.
_______________________________________ मिर्ज़ा ग़ालिब

Wednesday, March 31, 2010

Kisi Mod Par phir Mulakaat Hogi : BASHIR BADR

इन आंखों से दिन रात बरसात होगी
अगर जिंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी

मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी

चिरागों को आंखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

अज़ल-ता-अब्द तक सफर ही सफर है
 कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी

by : बशीर बद्र